BA Semester-3 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2652
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

अध्याय - 3
अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4)

अनुवाद तथा टिप्पणी

1.
तव कुसुमशरत्वं शीतरश्मित्वमिन्दो
र्द्वयमिदमयथार्थं दृश्यते मद्विधेषु।
विसृजति हिमगमैरग्निमिन्टु र्मयूखै -
स्त्वमपिमिकुसुमबाणान्वजसारीकरोषि॥

प्रसंग - राजा दुष्यन्त कामदेव को लक्ष्यकर कहते हैं कि हे भगवन कामदेव, विश्वास के योग्य आप और चन्द्रमा के द्वारा कामियों का समूह ठगा जा रहा है

हिन्दी अनुवाद - तुम्हारा पुष्णबाण कहा जाना और चन्द्रमा का शीतल (होना) कहा जाना ये दोनों ही बातें मुझ जैसे काम से पीड़ित लोगों के लिए अयथार्थ (असत्य) दिखाई पड़ती हैं। (क्योंकि) चन्द्रमा शीतल किरणों से अग्नि की वर्षा कर रहा है और तुम भी अपने फूल के बाणों को वज्र के समान कठोर बना रहे हो।

टिप्पणी - मदनबाधां मदनस्य बाधा, ताम्। निरूप्य नि + रूप + क्त्वा ल्यप्। कुसुमायुध - कुसुमम् आयुधं यस्य सः तत् सम्बुद्धौ। कुसुमशरत्वम् कुसुमानि एव शराः यस्य तस्य भावः (बहुब्रीहि)। अयथार्थम् - न यथार्थम् इति (नञ्तत्पुरुष) हिमगर्भैः - हिमं गर्भे येषां तैः (बहुब्रीहि) वज्रसारीकरोषि वज्रससार इव सारः येषां ते वज्रसाराः (बहुब्रीहि)। गुणातिपात नामक नाटय लक्षण है। प्रस्तुत पद्य में अप्रस्तुत प्रशंसा अलङ्कार भी हैं। समासगा, उपमा काव्यलिङ्ग, अपह्नुति आदि अलंकार भी है। प्रसाद गुण तथा वैदर्भी रीति है। मालिनी छन्द है।

 

2.
इदमशिशिरैरन्तस्तापाद विवर्णमणीकृतं
निश निशि भुजन्यस्तापाङ्गप्रसारिभिरश्रुभिः।
अनभिलुलितज्याघाताङ्कं मुहुर्मणिबन्धनात्
कनकवलयंत्रस्तंस्त्रस्तंमयाप्रतिसार्यते॥

प्रसंग - प्रियंवदा के कथन को सुनकर राजा दुष्यन्त कहते हैं कि मैं सचमुच ऐसा ही हो गया है।

हिन्दी अनुवाद - प्रत्येक रात्रि में भुजा पर रखे हुए नेत्र के प्रान्त भाग से बहने वाले आन्तरिक सन्ताप के कारण गरम आंसुओं से, जिसकी मणियाँ मलिन हो गयी हैं, और कलाई के बार-बार सरके हुए इस स्वर्णकंकन को मैं प्रत्यञ्चा के आघात के चिह्नों को न रगड़ते हुए बार-बार ऊपर की ओर सरकाता रहता हूँ।

टिप्पणी - अशिशिरैः न शिशिरैः (नञ् तत्पुरुष)। अन्तस्तापात् अन्तर्गतः तापः अन्तस्तापः, तस्मात्। विवर्णमणीकृतम् विवर्णाः मणयः यस्मिन् (बहुब्रीहि), विवर्णमणि + च्चि + कृ + क्त = विवर्णमणीकृत भुजन्यस्तापाङ्गप्रासारिभिः - भुजे न्यस्तः य अपाङ्ग तस्मात् प्रसारिभिः प्र + सृ + णि, तृ. बहु। न्यस्तः नि + अस् + क्त। मणिबन्धनात मणिः बध्यतेऽस्मिन्निति मणिबन्धनं तस्मात्। कनकवलयम् कनकस्यवलयम् (तत्पुरुष) यहाँ नायकगत विप्रलम्भ शृंगार स्पष्ट प्रतीत हो रहा है राजा का स्वाभाविक वर्णन होने से, स्वाभावेक्ति अलंङ्कार है। काव्यलिङ्गकी भी स्थिति है। कुछ आचार्य पर्यायोक्त या अप्रस्तुत प्रशंसा भी मानते हैं प्रसादगुण तथा वैदर्भी रीति है। हरिणी छन्द है लक्षण नसमरसला गः षड्वेदैनेर्हयैरिणी मता।

3.
यास्यत्यद्य शकुन्तलेति हृदयं संस्पृष्टमुत्कण्ठया
कण्ठः स्तम्भिबाष्पवृत्तिकलुषश्चिन्ताजडं दर्शनम्।
वैकक्लव्यं मम तावदीद्वशमिदं स्नेहादरण्योकसः
पीड्यन्ते गृहिणः कथं नु तनयाविश्लेषदुः खैः नवैः॥

प्रसंग - महर्षि कश्यप (कण्व) शकुन्तला की विदा वेला पर इस प्रकार कह रहे हैं।

हिन्दी अनुवाद - आज शकुन्तला? इसलिए मेरा हृदय उत्कण्ठा (दुःख) से भरा है, गला आसुओं के बहने के कारण रुँध गया है। दृष्टि चिन्ता के कारण जड़ (निश्चेष्ट) हो गयी है। वन में रहने वाले मुझ (जैसे - तपस्वी) को (शकुन्तला के प्रति) स्नेह (प्रेम) के कारण इस प्रकार का दुःख हो रहा है (तो) गृहस्थ लोग पहली बार पुत्री के वियोग के दुःख से कितना अधिक दुःखित होते होंगे?

टिप्पणी - यास्यति या + लृट् प्र. पु. ए. व.। संस्पृष्टम् सम + स्पृश् + क्त। उत्कण्ठया उत्कण्ठनमिति-उत् + कण्ठ् + अ + टाप् स्तम्भितवाष्पवृत्तिकलुषः स्तम्भिता वाष्पवृत्तिः तया कलुषः (तत्पु.) दर्शनम् दृश् + ल्युट्। चिन्ताजडम् चिन्तया जडम् (तत्पुरुष) वैकलव्यम् विकलस्य भावः - विकल + ष्यञ्अरण्यौकसः अरण्यम् ओकः यस्य (बहु)। तनयाविश्लेष दुःखैः तनयायाः विश्लेषस्य दुःखै। विश्लेष- वि। + श्लिष + घञ प्रस्तुत पद्य में करुण रस की व्यञ्जना हो रही है। महर्षि कण्वगत शोक स्थायीभाव, शकुन्तला का प्रस्थान आलम्बन, शकुन्तला के गुण आदि का स्मरण उद्दीपन, अनुभाव, चिन्ता, विषाद आदि व्यभिचारी भाव इस प्रकार करुणरस की स्थिति है। प्रस्तुत पद्य में व्यतिरेक अलंङ्कार है। समुच्चय तथा अर्थापत्ति भी हैं कुछ लोग काव्यलिङ्ग भी मानते हैं। प्रसादगुण तथा वैदभी रीति है। शार्दूलविक्रीडित छन्द है।

4.
पातुं न प्रथमं व्यवस्यति जलं युष्मास्वपीतेषु या

नादत्ते प्रियमण्डनापि भवतां स्नेहेन या पल्लवम्।

आद्ये वः कुसुमप्रसूतिसमये यस्या भवत्युत्सवः

सेयं याति शकुन्तला पतिगृहं सर्वैरनुज्ञायताम्॥

प्रसंग - महर्षि कश्यप (कण्व) तपोवन के वृक्षों को सम्बोधित करते हुए कह रहे हैं -

हिन्दी अनुवाद - जो शकुन्तला तुम्हें जल पिलाये बिना पहले जल पीने का विचार नहीं करती थी, जो अलंङ्कारों (आभूषणों) के प्रिय होने पर भी तुम्हारे प्रति स्नेह के कारण (तुम्हारे) नये पत्तों को नहीं तोड़ती थी, तुम्हारे प्रथम (आद्य) पुष्पोद्भव के समय जिसका उत्सव होता था, वह यह शकुन्तला अपने पतिगृह को जा रही है तुम बस अपनी स्वीकृति (आज्ञा) दो।

टिप्पणी - पातुं पा + तुमन्। अपीतेषु न विद्यते पीतं पानं येषां तेऽपीताः तेषु। प्रियमण्डना - प्रियं मण्डनं यस्याः सा तथोक्त (बहुब्रीहि)। कुसुमप्रसूतिसमयेकुसुमानां प्रसूतेः समये (तत्पुरुष)। प्रसूतिप्रसू + क्तित्। प्रस्तुत पद्य में समासोक्ति अलंङ्कार है। किसलयों को न तोड़ने में स्नेह कारण है, अतः काव्यलिङ्ग है। समुच्चय तथा अनुप्रास भी है। प्रसादगुण तथा वैदर्भी रीति है। शार्दूलविक्रीडित छन्द है।

5.
अस्मान् साधु विचिन्त्य संयमधनानुच्चैः कुलचात्मन

य्यत्वधस्याः कथमप्याबान्धकृतां स्नेहप्रवृत्ति च ताम्।

सामान्यप्रतिपत्तिपूर्वकमियं दारेषु दृश्या त्वया

भाग्यायत्तमतः परं न खलु तद्वाच्यं वधूबन्धुभिः॥

प्रसंग - महर्षि कश्यप् (कण्व) राजा दुष्यन्त को सन्देश में इस प्रकार कह रहे हैं।

हिन्दी अनुवाद - संयमरूपी धन वाले हम लोगों का अपने ऊंचे कुल का और तुम्हारे प्रति इस (शकुन्तला) के बन्धुओं के द्वारा न किये गये उस स्वाभाविक स्नेह (प्रेम) व्यापार को भली-भाँति सोच-विचार करके तुम अपनी स्त्रियों में सभी के समान गौरव के साथ देखना, इसके आगे (तो) भाग्य के अधीन है। वह वधू के सम्बन्धियों को नहीं कहना चाहिए।

टिप्पणी - विचिन्तय- वि + चिन्त + क्तवा = ल्यप्। संयमधानन् संयम एव धनं येषां तान् (बहुब्रीह) संयम - सम् + यम् + अप्। प्रवृत्तिम् प्र + वृत् + क्तिन्। अबान्धव, न बान्धवैः कृता- अबाधन्वकृता, ताम। सामान्यप्रतिपत्तिपूर्वकम् सामान्यप्रतिपत्तिः पूर्वा यस्मिन् तत् (बहुब्रीहि) प्रतिपत्ति- प्रति + पद + क्तिन् + आयत्त आ + यत + क्त प्रस्तुत पद्य में अपस्तुत प्रशंसा अलंकार तथा काव्य लिंङ्ग अलंकार है। प्रसाद गुण तथा वैदर्भी रीति। शार्दूलविक्रीडित छन्द है।

6.
शुश्रूषस्व गुरून् कुरु प्रियसखीवृत्तिं सपत्नीजने

भर्तुविप्रकृतापि रोषणतया मा स्म प्रतीपं गमः।

भूयिष्ठं भव दक्षिणा परिजने भाग्येष्वनुत्सेकिनी

यान्येवं गृहिणीपदं युवतयों वामाः कुलस्याधयः॥

प्रसंग - महर्षि काश्यप (कण्व) शकुन्तला को लक्ष्य कर कह रह रहे हैं कि तुम यहाँ से पतिग्रह में पहुँचकर इस प्रकार व्यवहार करना।

हिन्दी अनुवाद - गुरुजनों की सेवा शुश्रूषा करना, सीता (सपत्नियों) के साथ प्रियसखी जैसा व्यवहार करना, तिरस्कार करने पर भी क्रोध के कारण पति के प्रतिकूल कार्य मत करना, सेवकों के प्रति अत्यनत उदार रहना, और अपने भाग्य पर अभिमान न करना। इस प्रकार का आचरण करने वाली स्त्रियाँ गृहणी के पद को प्राप्त कर लेती हैं और इसके विपरीत आचरण करने वाली (स्त्रियाँ) कुल के लिए अभिशाप होती हैं।

टिप्पणी - शुश्रूषस्व श्रु + सन् + लोट म. पु. एकवचन। प्रियसखीवृत्तिं प्रियसंख्याः वृत्तिम् (तत्पुरुष)। सपत्नीजने सपत्नी समानः पतिः यस्या सा (बहु.) विप्रकृतापि + वि + प्र + कृ + क्त + टाप् विप्रकृता। रोषणतया रुष् + युच् रोचण + तल + टाप् रोषणतया। भूयिष्टं बहु + इष्ठन्। उत्सेक उत + सिच् + घञ युवतयः युवन् + ति यहाँ यूनस्तिः से ति प्रत्यय। वामा-वम् + ण टाप्। आधयः आधीयते दुःखमनेनेति आ + धा + कि प्रस्तुत पद्य में अर्थान्तरन्यास रूपक हेतु आदि अलंकार हैं। शार्दूलविक्रीडित छन्द भी है।

7.
सायन्तने सवनकर्मणि सम्प्रवृत्ते,
वेदिं हुताशनतीं परितः प्रयस्ताः।
छायाश्चरन्यति बहुधा भयमादधानाः,
सन्ध्यापयो दकपिशाः पिशिताशनानाम्॥

प्रसंग - आकाशभाषित के द्वारा राजा दुष्यन्त को लक्ष्य कर कह रहा है।

हिन्दी अनुवाद - सायंकालीन यज्ञ कर्म के प्रारम्भ होने पर अग्नि से युक्त वेदी के चारों ओर 'व्याप्त, सायंकालीन बादलों के समान कपिश (काले-पीले) रंगवाली भय उत्पन्न करने वाले राक्षसों की परछाइयाँ अनेक प्रकार से (इधर-उधर) विचरण कर रही हैं।

टिप्पणी - 'सायन्तने सायं भवं - सायं + टयु तथा तुट् का आगम। सवन कर्मणि सनवस्य कर्मणि (तत्पुरुष)। सवन - सु + ल्युट्। सम्प्रवृत्त -सम् + प्र + क्त। हुताशनवती - हुताशन + मतुप् + ङीप्। 'म' को 'व'। हुत- हु + क्त। अशन -अशल्यु यस् + क्त हुतस्य अशनः = हुताशनः। यहाँ परितः के योग्य में द्वितीया है। प्रयस्ताः प्र + यस् + क्त बहुधा बहु + धा। आदधानः- आ + धा + शानय्च्। सन्ध्यापयोदकपिशा :- सन्ध्यापयोदा इव कपिशा : (उपमान समास)। पिशिताशनानाम् पिशितम् अशनं येषां तेषाम् (बहुब्रीहि)। यहाँ भयमादधानाः का कारण राक्षसों की छाया है, अतः काव्यलिङ्ग अलङ्कार है संन्ध्यापयोदकपिशः में लुप्तोपमा है। प्रसाद गुण तथा वैदर्भी रीति भयानक रस है कहा भी गया है भये तु मन्तुना घोरदनर्शश्रवणादिभि। पतस्यतीव चाञ्चल्यं तत्प्रायोः नीचमध्यमौ। वसन्ततिलका छन्द है।

8.
यात्येकतोऽस्तशिखरं पतिरोषधीना
माविष्कृतोऽरुणपुरःसर एकतोऽर्कः।
तेजोद्वयस्य युगपद्व्यसनोदयाम्यां
लोकोनियम्यतइवात्मदशान्तरेषु॥

प्रसंग - महर्षि कण्व का शिष्य यह बतला रहा है कि प्रातः काल हो गया है।

हिन्दी अनुवाद - एक ओर चन्द्रमा अस्ताचल को जा रहा है और दूसरी ओर अरुण को आगे किये हुए सूर्य उदित हो रहा है। (यह) संसार दो तेजों के एक साथ अस्त और उदय के द्वारा मानो अपनी दशा विशेषों में नियंत्रित हो रहा है।

टिप्पणी - अस्तशिखरं अस्तस्य शिखरमिति (तत्पुरुष)। 'अस्तस्तु चरमक्ष्माभृत्' इत्यमरः। ओषधीनां पतिः चन्द्रमा को ओषधियों का स्वामी कहा जाता है। वेद में भी यह कहा गया है 'सोम ओषधीनां पतिः। ओषधि - ओषः पाक: दिप्तिः वा धीयते अस्यामिति - ओष + धा + कि इससे यह अर्थ अभिव्यञ्जित होता है कि औषधियाँ रोगनाशक होती है और दूसरे के प्राणों को बचाती हैं, परन्तु समय के आ जाने पर औषधियों की तो बात ही क्या ओषधीश (चन्द्रमा) भी अपने को नहीं बचा पाता है। चन्द्रमा के किरणों से औषधियाँ वृद्धि को प्राप्त होती हैं। अतएव 'ओषधीश' कहा जाता है। आविष्कृतः आविस् + कृ + क्त। अरुणपुरः सरः- अरुणः पुरः सरः यस्य सः (बहुब्रीहि)। आत्मदशान्तरेषु-आत्मनः दशानाम् अन्तराणि (तत्पुरुष), तेषु। चन्द्रमा तथा सूर्य में दो सत्पुरुषों के आरोपित होने से 'समासोक्ति अलंङ्कार है। तुल्ययोगिता भी है। चन्द्र तथा सूर्य के उदय एवं अस्त होने में क्रम होने के कारण 'यथासंख्य' अलंकार है। उत्प्रेक्षा अलंकार भी है। प्रसाद गुण तथा वैदर्भी रीति। वसन्ततिलका छन्द है।

9.
अर्थो हि कन्या परकीय एव
तामद्य सम्प्रेष्य परिग्रहीतुः।
जातो ममायं विशद: प्रकामं
प्रत्यर्पितन्यास इवान्तरात्मा॥

 

प्रसंग - इस श्लोक में कन्या का पराया धन के रूप में तथा धरोहर बताया गया है।

हिन्दी अनुवाद - शकुन्तला के पालित पिता कहते हैं कि पुत्री तो पराया धन होती है। माता-पिता के पास तो किसी की धरोहर के रूप में होती है। वस्तुतः कन्या तो पराया धन होती है। आज उसे पति के पास भेजकर मेरा यह हृदय उसी प्रकार अत्यन्त प्रसन्न हो रहा है। जिस प्रकार किसी की धरोहर को सुरक्षित लौटाने पर होता है।

टिप्पणी - कन्या = दुहिता, हि = निश्चयेन, परकीयः = अन्यस्यु एव हि अर्थ = धनम् तां = कन्यां परिग्रहीतु = परिणेतुः, इव = यथा, विशद: = प्रसन्न प्रकामं = अत्यधिकं जातः = सम्पन्नः। कन्या हि अस्यैव धनमस्ति तां कन्या गद्य समीपे प्रसन्नः जायते। उत्प्रेक्षालंकारः। इन्द्रवज्रा वृत्तम्॥

10.
रम्यान्तरः कमलिनीहरितैः सरोभि-
शच्छायाद्रुमैर्नियमितार्कमयूखतापः।
भूयात् कुशेशयरजोमृदुरेणुरस्याः
शान्तानुकूलपवनश्चशिवश्चपन्थाः॥

प्रसंग - आकाश में शकुन्तला का लक्ष्य कर कहा जा रहा है कि तुम्हारा मार्ग मंगलमय होवे।

 

हिन्दी अनुवाद - कमलिनियों से हरे-भरे तालाबों से (मार्ग का) मध्यभाग रमणीक हो। घनी छाया वाले वृक्षों से सूर्य की किरणों का पाप रोक दिया हो (इस प्रकार) इसका मार्ग कमलों के पराग कोमल धूलि से युक्त, शान्त और अनुकूल पवन से युक्त तथा कल्याणकारी होवे।

 

टिप्पणी - रम्यान्तरः रम्यम् अन्तरं यस्य सः तथोक्तः (बहुब्रीहि)। रम्यम् रम् + यत्। कमलिनीहरितैः - कमलनीभिः कमलनीभिः हरितैः (तत्पु.)। नियमितार्कमयूखतापः नियमितः अर्कस्य मयूखानां तापः यस्मिन् सः (बहु.)। कुशेशय रजोमृदुरेणुः कुशेशयानां रजोभिः रजांसीव वा मृदवः रेणवः यत्र स तादृश: (बहुब्रीहि)। शान्तानुकूलपवनः - शान्त पवनः यस्मिन् सः (बहु) प्रस्तुत श्लोक में तुल्ययोगिता, काव्यलिंग अलंकार हैं। तद्गुण समासगा वाचकलुप्तोपमा भी है। प्रसाद गुण तथा वैदर्भी रीति है। वसन्ततिलका छन्द है।

11.
भूत्वा चिराय चतुरन्तमहीसपत्नी
दौष्यन्तिमप्रतिरथं तनयं निवेश्य।
भर्जा तदर्पितकुटुम्बभरेण सार्धं
शान्ते करिष्यसि पदं पुनराश्रमेऽस्मिन्॥

प्रसंग - महर्षि कश्यप शकुन्तला को लक्ष्य कर इस प्रकार कह रहे हैं।

हिन्दी अनुवाद - चिरकाल तक चारों समुद्रों तक व्याप्त पृथ्वी की सौत होकर अपने अद्वितीय महारथी पुत्र भरत को सिंहासन पर बैठाकर और उस पुत्र को अपने कुटुम्ब का भार सौंप देने वाले पति के इस शान्त आश्रम में फिर आओगी (आकर निवास करोगी)।

टिप्पणी - चतुरन्नतमहीसपत्नी - चत्वारः अन्तः यस्याः तादृश्याः मह्या सपत्नी (तत्पु.)। दौष्यन्तिम् - दृष्यन्तस्य अपत्यं पुमान् दुष्यनत + इञ्। अप्रतिरथम् - न विद्यते प्रतिरथः यस्य सः तम् (बहु.)। निवेश्य- नि + विश् + णिच् + क्तवा ल्यप्। तदर्पितकुटुम्बभरेण तस्मिन् अर्पितः कुटुम्बस्य भरः येन तेन (बहु.)। प्रस्तुत श्लोक मालादीपक अलंकार है। कुछ विद्वान् काव्यलिङ्ग मानते हैं। प्रसाद गुण तथा वैदर्भी रीति है। वसन्ततिलका छन्द है।

 

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
  2. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  4. प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
  9. प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
  13. प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
  15. प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
  16. प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
  17. प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  18. प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
  19. प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
  20. प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
  21. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
  22. प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
  25. प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  26. प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
  28. प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
  29. प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
  30. प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  31. प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
  33. प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
  34. प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
  35. प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  37. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  38. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
  39. प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
  40. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
  41. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
  42. प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
  43. प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
  44. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  45. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  47. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  48. प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
  49. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
  50. प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
  52. प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
  53. अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
  54. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  55. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
  56. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  57. प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
  58. प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
  59. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  60. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
  61. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
  62. प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
  63. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  65. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
  66. प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  67. अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
  68. प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
  69. प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
  70. प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
  71. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
  73. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
  76. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
  77. प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
  78. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  80. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
  81. प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
  84. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
  85. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
  86. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
  87. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
  88. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  89. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
  90. प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
  91. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
  93. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)

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